He is literally saying that Congress will lock Ram Mandir, that's why he needs 400 seats. He is becoming unbelievable day by day https://www.instagram.com/reel/C6vBOD2tD-z Edit - just want to callout an example of how hatred and divisive politics work. Someone in the comments finds superiority by working at Salesforce. Hate and divide works on the notion of finding oneself superior than other. I am sure that even Modi supporters work at Paytm.
I agree with overloaded comunal stuff in speeches. But please have a habit of reading some reports. Inflation yoy increase is in control compared with upa1 and upa2. And most of all the NPAs are drastically reduced. Just read about the insolvency and Bankruptcy code. Now, try to find out about what had been done in UPA1 and UPA2 wrt to lending ....every tom dick n Harry flaunting their suits got the loans without a fkin asset verification (malya was just tip of an iceberg) The first one to highlight this issue was none other but Raghuram Rajan. Don't be an andh bhakt dude.
Did I highlight reports in this post ? Clearly the objective is to highlight communal propaganda. And your data about loans and inflation is incorrect. NDA's performance is poorer than UPA I am not andh bhakt, RaGa ko Gali dena hai do, I don't care
UPA was the worst, Bank NPA was out of control, PM was literally silent on all the scams and frauds.
Naxals hate a booming economy
@OP: If wealth redistribution happens my aunt will be ok with your RSU(s)
Love how Raga supporters calls modi communal but Doesn't say a word about Raga and its alliances caste politics
Btw i dont support Raga. Provide a damn proof of him spreading hatred. I am okay to support bjp if they have an educated candidate like Gadkari
Check out him telling that Muslims are undergoing what dalits underwent in 1980s. Deeply communal, this speech unites Muslims , meanwhile dividing Hindus, also it spreads hate But I know you won't. And would neither condemn it
युगपुरुष ने इन चुनावों के हर चरण में उत्तरोत्तर इसके प्रमाण दिए हैं कि भाषा की आक्रामकता, जहरीलेपन, विभाजकता, द्वेषपूर्णता, झूठ और भारत की सामाजिक एकता को खंडित और माहौल को दूषित करने वाले आख्यान गढ़ने में उनका कोई मुक़ाबला नहीं है। ऊपर से ऐसा विराट अहंकार। अब वे अपने आप को एक अन्य पुरुष के रूप में प्रस्तुत करते हैं। मनोविज्ञान में इसे आत्ममुग्धता/आत्मरति कहते हैं (narcissism)। इसमें व्यक्ति स्वयं को एक वीरगाथा नायक के रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें आत्म-महत्व की बढ़ी हुई भावना, ध्यान और प्रशंसा की अत्यधिक आवश्यकता, सतही रिश्ते और सहानुभूति की कमी शामिल होती है। एक सीमा के बाद यह समस्या बन सकता है। इसके लक्षणों में एक यह भी है कि आत्मकामी व्यक्ति को इसका अहसास नहीं होता। वह उसी में जीने लगता है। भारतीय संस्कारों में बड़बोलापन अच्छा नहीं माना जाता। हमारे यहाँ विनम्रता-विनय सद्गुण माने जाते हैं। जो व्यक्ति स्वयं को आध्यात्मिक बना कर विज्ञापित करता हो उसके लिए 'मैं' और अपने नाम का स्वयं ही इतना ऐसा प्रयोग असामान्य अहंकार ही माना जाएगा। शास्त्र आत्म-प्रशंसा को आत्महत्या कहते हैं। राम-रावण युद्ध और महाभारत में युद्ध के बीच अर्जुन-युधिष्ठिर टकराव को लेकर इसके बारे में रोचक कथा है। आध्यात्मिक व्यक्ति स्वयं को छिपाता है। हर संभव वस्तु और अवसर पर अपनी ही छवि देखने-दिखाने का विराट आत्ममोह नहीं दिखाता। आत्मगोपन, मौन, एकांतप्रियता आध्यात्मिक व्यक्ति के सहज लक्षण हैं। गीता (अध्याय १३, श्लोक १०) में श्रीकृष्ण भक्त के लक्षण बताते हैं, ...विविक्तदेशसेवित्वम् अरतिर्जनसंसदि। (एकान्त और निर्जन शुद्ध स्थान पर रहना और लोगों की भीड़ में अ-रति यानी विरक्ति) अध्यात्म और शक्तिलिप्सा परस्पर विरोधी हैं। राजसत्ता की ऐसी लपलपाती प्रबल पिपासा से भरा व्यक्ति आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता। उसका आध्यात्मिक होने का प्रदर्शन करना शुद्ध नाटक है, लोगों को प्रभावित करने का एक तरीक़ा। हाँ वह सतही तौर पर आस्थावान ज़रूर होगा। आध्यात्मिक व्यक्ति इतना वैभव-प्रिय, अपने वस्त्रों अपनी छवि को लेकर इतना सावधान नहीं होता। आध्यात्मिक राजनीतिज्ञ आज के समय में कैसा होगा यह देखना हो तो गांधी को देखिए। विनोबा, श्री अरविन्द, राजर्षि कहे गए पुरुषोत्तम दास टंडन को देखिए। इतनी दूर न जाना हो तो कर्पूरी ठाकुर को देखिए। गांधीवादियों, पुराने कांग्रेसियों, समाजवादियों, कम्युनिस्टों के साथ-साथ जनसंघ-भाजपा-संघ के अनगिनत वरिष्ठ लोगों को देखिए। मोहन भागवत को देखिए। उनकी सर्वांगीण सादगी देखिए और तुलना कीजिए। पुराने प्रधानमंत्रियों को ही देख लीजिए। सब ठीकठाक रहते-दिखते थे। शांतिनिकेतन में गुरुदेव की छत्रछाया में पढ़ीं इंदिरा जी तो अपनी सुरुचि और कलाप्रियता के लिए प्रसिद्ध थीं। लेकिन इनमें कोई अपने 'दिखने' को लेकर इतने obsessive नहीं था। राजेन्द्र बाबू ने तो खैर राष्ट्रपति भवन में जैसा सादा जीवन बिताया वह कहानी बन गया। कलाम साहब की सहजता-सरलता किंवदंती बन गई। नई किंवदंती किस बात की बनेगी? यह सब इसलिए कि एक व्यक्ति की चरम आत्मकेंद्रिकता हम देख सकें। यह केवल दिखने-दिखाने, छवि का ही मामला होता तो चल जाता। यह मनोविज्ञान जब शक्ति और सत्ता के शिखर पर सक्रिय होता है तो सत्ता की शैली और समूचे आचरण की संस्कृति बन जाता है। तब सत्तासीन व्यक्ति अपनी ओर देखने वाली हर आँख में भक्ति-समर्पण-कातरता-भय-प्रशंसा-स्तुति देखना चाहता है। उनका अभ्यस्त हो जाता है। एक सहज समानता और स्वाभिमान के साथ देखती आँखें और भंगिमा उसे अस्तव्यस्त और विचलित करती हैं। क्रुद्ध करती हैं। ऐसी आँखें, ऐसी बातें दंड पाती हैं। तब असहमति अपराध बन जाती है। विरोध शत्रुता की तरह लिया जाता है। दोनों दबाए जाते हैं। संवाद असंभव हो जाता है। प्रश्न धृष्टता बन जाते हैं। अधिकारों की माँग चुनौती की उद्दंडता की तरह देखी जाती है। हाँ-हाँ भाई, इंदिरा गांधी की इमर्जेन्सी खूब याद है। उन्होंने ठीक इन्हीं लक्षणों को दिखाया था। उसकी सज़ा पाई। आज भी कांग्रेस उस एक घटना के कारण हर जगह वैचारिक रूप से पीटी जाती है। पीटा जाना भी चाहिए। इसलिए अब कोई शासक इमरजेंसी जैसी गलती नहीं करेगा। आज के नए हथियार ज़्यादा महीन और क्रमिक हैं। आज हमें ऐसी हर प्रवृत्ति के प्रति ज़्यादा जागरूक रहने की ज़रूरत है। इमरजेंसी पूरे देश के लिए एक झटका था। स्वयं इंदिरा मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी भनक नहीं मिली थी। अब ऐसी गलती कोई क्यों दोहराएगा? ऐसा शासक अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों तक को अपने से नीचे कक्षा के विद्यार्थियों की तरह बिठाता है। उन्हें खड़े होकर अपना रिपोर्टकार्ड पेश करना पड़ता है। उन्हें डाँट पड़ती है। मंत्रिमंडल की बैठकों में खुली, निर्भय मंत्रणा और संवाद नहीं होता। एक या दो बोलते हैं। बाक़ी सुनते हैं। विदेहराज जनक की तरह ज्ञानी, स्थितप्रज्ञ विरक्त राजा पौराणिक कथाओं में ही मिलते हैं। हर देश को शासक की ज़रूरत होती है। राज्य व्यवस्था का विकल्प अराजकता है। व्यवस्था अनुशासन माँगती है। नियमों-मर्यादाओं का पालन माँगती है। और शासक विरक्त सन्यासी नहीं हो सकता। अब यहाँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का उदाहरण मत दीजिएगा। वे एक मठ के महन्त हैं। आध्यात्मिक साधनारत योगी रहे हों इसकी जानकारी नहीं मिलती। महन्त मुख्यतः मठ के विविध कार्यकलापों को चलाने वाला प्रबन्धक होता है। कई महन्त विद्वान, श्रेष्ठ साधक और सच्चे आध्यात्मिक गुरु भी हुए हैं। आज भी हैं। लेकिन इतनी खुली सत्तालिप्सा वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता। यह आध्यात्मिक शक्ति साधना वाली परंपरा का मामला नहीं है। उन साधकों के लक्षण अलग होते हैं। उनकी वाणी-आचरण-दूसरों से व्यवहार अलग होते हैं। उनमें वैचारिक-वाचिक हिंसा, द्वेष, भेदभाव, छल, असूया नहीं होते। आस्था और आध्यात्मिकता अलग हैं। ९५% व्यक्ति किसी न किसी परंपरा में किसी न किसी ईश्वर-देवता-शक्ति-इष्ट के प्रति आस्थावान होते हैं। उनमें आध्यात्मिक .५% भी हों तो बड़ी बात है। इसलिए जहाँ भी ख़ुद को एक साथ चक्रवर्ती सम्राट और अध्यात्ममार्ग पथिक दिखाने का प्रयास दिखे समझ जाइए कि आपको मूर्ख बनाया जा रहा है। सावधान हो जाइए। जहाँ 'मैं' की अति दिखे, सावधान हो जाइए। अपने मैं के प्रति भी सजग रहिए दूसरों के भी।
Now even RSS is looking to oust him. He has created many enemies among allies.
Pride goes before fall
Buthurt haters till last week: Modi is a brutal dictator, absolute autocracy, he has taken over election commission, all EVMs are hacked, India has no democracy, election is an eye wash because its totally rigged, this is the end of world as we know it! Dictator dictator! Butthurt haters this week: Modi is so weak, he is not winning at all! Haha. Thats why he is indulging in theatrics and talking about random things! He knows he is not going to win! He is literally begging for votes! This is it! INDI alliance will get full majority! 🤡🤡🤡 Abe gadho.. thoda toh logic maintain karo.
Enjoy till Jun 4.
No please tell me which one is it? A dictator who controls EC and every EVM simply votes for him and democracy is gone… OR modi is begging for votes and will lose on June 4th? Both are polar opposite.. which one is true?? You guys have been harping both 🤡😂
when black ask question, white could not open mouth.
मित्रों, दिल्ली से वडनगर की दूरी 700 किलोमीटर है। तो मन में पक्का ठानिये... अब की बार, 700 पार... धक्का मार... 😃😃😃
No wonder you are still stuck at Paytm.
I love paytm
BTW this is a great comeback @salesforce